माझी शायरी

मला मराठी साहित्य आणि काव्य यात रस आहे. जमेल तसे वाचन आणि लेखनाचाही प्रयत्न चालू असतो. या वर्षी मार्च मध्ये कोविड विषाणूने रोजच्या दिनचर्येची   उलथापालथ केली आणि नकळत माझ्या साहित्य प्रवासाला एक नवीन फाटा फुटला. विषाणू, लॉकडाउन इत्यादी विषयांवर काही हौशी मंडळींनी केलेली शायरी आणि कविता वाचून आपणही हिंदीत शायरी सदृश्य चारोळ्या किंवा कविता लिहाव्यात असे वाटले, त्याच फलश्रुतीचे हे काही मजेशीर तर काही संचित नमुने:

जिंदगी के बोझ से मेरे दिल की ये बेचैनी ‘अभी’
लफ्ज बनके रह गयी इसलिये शायर दिखता हूँ 

इसे नज्म कहकर बदनाम ना करना मुझे ऐ दोस्त
मैं तो रोज दिन भर का केवल हिसाब लिखता हूँ!

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कहते है वक्त किसी के लिये रुकता नहीं है..
फिर क्यों तेरे हिलकोरे पर ये थम सा जाता है?

तेरे इश्क का नशा है, मै इसे और क्या कहूँ..  
वर्ना क्यूँ तेरी याद आते ही ये मन मुस्कुराता है?

बिखरी ज़ुल्फ़ों का साया अब मेरा मयखाना
तेरी झुकी नजर बयाँ करे मैकशी क्या चीज़ है..

पिला देना मुझे ये जाम जरा तू अपने होठोंसे
दिलके दरियामें अगन की पेहेली ‘अभी’ बाकी है!



खाली पडी आज सडक, 
सुनसान है ये सारी बस्ती
अपने अपने घरों में जैसे 
यूंही कैद पडा है हर हस्ती

आज महफिलसे हो गयी 
गायब सारी मौज-मस्ती
दूर से बातचीत करके ही 
अब निभा रहे है दोस्ती

महेंगी हो गयी सारी चीजे
और जान हो गयी है सस्ती
निर्जीव वायरस ने बिगाड दी
हमारे जिंदगी की तंदुरूस्ती!

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उस दिन मैं मंदिर में गया था
आज कल के हालात देखकर
अभी आप ही कुछ करोना
भगवान से कहा हाथ जोडकर

वो लफ्ज कहतेही हंगामा हुआ
पुजारी ने कहा मेरे पास आकर
सही शब्द का इस्तेमाल करना
वरना नही बनेगा तू कभी शायर

उसने फिर हाथपर दियें दो बूंद
जो पी लिये मैंने तीरथ समझकर
बादमें पेटमें होने लगी गडबड
तौबा वो तो था हॅंड सॅनेटायझर

मेरे जैसे और भी गलतीसे पी गये
सब बेचारे भागे अपने अपने घर
इसी लिये हर दुकान से आज
गायब हो गया है टॉयलेट पेपर!


अभिजित रायरीकर 
Naperville, IL